सीमायें हैं क्या, कोई प्यार की ?
क्यूँ बहती जाती है, ये सागरों की धार सी !
ना है बड़ा कोई बंधन, इस प्यार सा ,
होश उड़ा देता है ये अपने यार का !!
निश्छल सा हो प्यार जिसका ,
उतना ही करो सम्मान उसका !
अपना कर दो सब कुछ ,सिर्फ उसी का ,
जो सिर्फ करे तुमसे प्यार ऐसा !!
प्यार करो किसी से ऐसे ,
फुर्सत ना मिले तुमको उसी से !
दर्द बनो तूं , दवा बनो तूं ,
करते हो तुम प्यार जिससे !!
वो क्या है प्यार जिसमे ,
मुहब्बत की आजमाईशें हो !
करके देखो प्यार वैसा ,
जहाँ किसी दुसरे की ना गुन्जाईशें हो !!
देखो , फिर उस प्यार की खुशबू ,
कहाँ कहाँ तक महकेगी !
ठुकड़ा देगी दुनिया भी इक दिन ,
पर इसकी खुशबू साथ ना छोड़ेगी !!
प्रशांत"पिक्कू"
२४/०२/२०१०
०१:३२ AM
Tuesday, February 23, 2010
Thursday, February 18, 2010
सभी हैं चाँद की तालाश में !!
आसान नहीं है जिन्दगी अपनी ,
जितना मैंने सोच रखा था !
सारे सपने बिखरे पड़े हैं ,
जो जो मैंने संजो रखा था !!
जब तक था उन चिड़ियों की तरह ,
जो है कैद में उन पिंजड़ो के !
उड़ जाऊंगा सोचा था ,खुली आकाश में ,
कर लूँगा सैर एक दिन उस चाँद के !!
जब निकला मैं कैद से बाहर ,
आया खुली आकाश में !
देखी भीड़ है उमड़ी सबो की ,
सभी हैं चाँद की तालाश में !!
ज्यों ज्यों करीब मैं चाँद के आया ,
चाँद भी मुझसे दूर भागता रहा !
जब थक कर मैं वापिस आया ,
अब उस चाँद का बुलावा आया !!
मेहनत कम नहीं है करनी ,
मंजिल अगर तलाशनी है !
सचेत हो जाओ अभी से यूँ तूं ,
जीवन अगर संवारनी है !!
प्रशांत"पिक्कू"
19/02/2010
00:27 AM
जितना मैंने सोच रखा था !
सारे सपने बिखरे पड़े हैं ,
जो जो मैंने संजो रखा था !!
जब तक था उन चिड़ियों की तरह ,
जो है कैद में उन पिंजड़ो के !
उड़ जाऊंगा सोचा था ,खुली आकाश में ,
कर लूँगा सैर एक दिन उस चाँद के !!
जब निकला मैं कैद से बाहर ,
आया खुली आकाश में !
देखी भीड़ है उमड़ी सबो की ,
सभी हैं चाँद की तालाश में !!
ज्यों ज्यों करीब मैं चाँद के आया ,
चाँद भी मुझसे दूर भागता रहा !
जब थक कर मैं वापिस आया ,
अब उस चाँद का बुलावा आया !!
मेहनत कम नहीं है करनी ,
मंजिल अगर तलाशनी है !
सचेत हो जाओ अभी से यूँ तूं ,
जीवन अगर संवारनी है !!
प्रशांत"पिक्कू"
19/02/2010
00:27 AM
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