Thursday, February 18, 2010

सभी हैं चाँद की तालाश में !!

आसान नहीं है जिन्दगी अपनी ,
जितना मैंने सोच रखा था !
सारे सपने बिखरे पड़े हैं ,
जो जो मैंने संजो रखा था !!

जब तक था उन चिड़ियों की तरह ,
जो है कैद में उन पिंजड़ो के !
उड़ जाऊंगा सोचा था ,खुली आकाश में ,
कर लूँगा सैर एक दिन उस चाँद के !!

जब निकला मैं कैद से बाहर ,
आया खुली आकाश में !
देखी भीड़ है उमड़ी सबो की ,
सभी हैं चाँद की तालाश में !!

ज्यों ज्यों करीब मैं चाँद के आया ,
चाँद भी मुझसे दूर भागता रहा !
जब थक कर मैं वापिस आया ,
अब उस चाँद का बुलावा आया !!

मेहनत कम नहीं है करनी ,
मंजिल अगर तलाशनी है !
सचेत हो जाओ अभी से यूँ तूं ,
जीवन अगर संवारनी है !!

प्रशांत"पिक्कू"
19/02/2010
00:27 AM

5 comments:

  1. उड़ जाऊंगा सोचा था ,खुली आकाश में ,
    कर लूँगा सैर एक दिन उस चाँद के !!
    nice

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  2. so realistic.......so heartfelt........so true....
    gud job sir

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  3. nice brother....bahut achhi hai...aaj ke daur ka ek dam sahi varnan kiye hai....all the best brother ..keep it up....

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