Tuesday, February 23, 2010

सीमायें हैं क्या, कोई प्यार की ?

सीमायें हैं क्या, कोई प्यार की ?
क्यूँ बहती जाती है, ये सागरों की धार सी !
ना है बड़ा कोई बंधन, इस प्यार सा ,
होश उड़ा देता है ये अपने यार का !!

निश्छल सा हो प्यार जिसका ,
उतना ही करो सम्मान उसका !
अपना कर दो सब कुछ ,सिर्फ उसी का ,
जो सिर्फ करे तुमसे प्यार ऐसा !!

प्यार करो किसी से ऐसे ,
फुर्सत ना मिले तुमको उसी से !
दर्द बनो तूं , दवा बनो तूं ,
करते हो तुम प्यार जिससे !!

वो क्या है प्यार जिसमे ,
मुहब्बत की आजमाईशें हो !
करके देखो प्यार वैसा ,
जहाँ किसी दुसरे की ना गुन्जाईशें हो !!

देखो , फिर उस प्यार की खुशबू ,
कहाँ कहाँ तक महकेगी !
ठुकड़ा देगी दुनिया भी इक दिन ,
पर इसकी खुशबू साथ ना छोड़ेगी !!

प्रशांत"पिक्कू"
२४/०२/२०१०
०१:३२ AM

3 comments:

  1. lovely poem ,i like specially last para. n it is true.

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  2. देखो , फिर उस प्यार की खुशबू ,
    कहाँ कहाँ तक महकेगी !
    ठुकड़ा देगी दुनिया भी इक दिन ,
    पर इसकी खुशबू साथ ना छोड़ेगी .nice

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  3. ek dam sahi baat hai... bahut sahi likha hua poem hai...aur antim para ki to baat hi kuchh aur hai...

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