Wednesday, June 17, 2009

प्रीत की लत मुझे लगी है ऐसी !

ये मुलाक़ात भी, क्या मुलाक़ात होगी ,
एक दिन में ही क्या खाक बात होगी !
सपने सजाये थे महीनो गुफ्तगू के लिए ,
बस चन्द लम्हों से क्या ये बात होगी !!

सोचा था घुमुंगा बांहों में लेकर ,
करवाऊंगा सैर उनको प्रेम का नगर !
प्रीत की लत मुझे लगी है ऐसी ,
सोचूं वो है कुमुदनी, और मैं हूँ भ्रमर !!

हूँ निर्दोष दोनों ही मगर ,
समय और परिस्थिति का है ये असर !
वो हैं फुर्सत में तो, मैं हूँ काम में फंसा ,
मैं आऊँ जब फुर्सत में तो ,उन्हें भी है काम की फिकर !!

शिकवा नहीं है उनसे कोई ,
मैंने खुद सी ही ये पूछा है !
मैं अगर होता उनकी जगह ,
तो क्या हाल होता ,ये सोचा है !!

उन्होंने भी जाना है मेरी बेबशी को ,
मगर दिल कहाँ ये मान पाता है !
कहता दिल मेरा भी साथ रहने को ,
मगर अभी नहीं ये संभव हो पाता है !!

शायद संभव हो जाये ये भी बातें ,
सपने ,हकीक़त बन बैठे !
फिर लाले न पड़े मुलाकातों की ,
और एक दूजे में हम भी खो जाएँ !!

शिकवा है मुझे बंद आँखों से ,
सपनो में ही ये भुला देता है !
जब तैयार हो जाओ इनमे खो जाने को ,
तो हकीक़त का पाठ ये पढ़ा देता है !!

आती क्यूँ ये ऐसा सपना ,
जो हकीक़त नहीं बन पाता है !
ऐ खुदा ,मत दिखलाओ सपना ऐसा ,
जिसे संजोने से दिल चूर चूर हो जाता है !!

जो सपना है मैंने देखा ,
अगर ये सिर्फ सपना है !
तो चाहूँ सो जाऊं उम्र भर के लिये ,
देखूं उनको बस ,जिनके लिये ये सपना है !!

प्रशांत "पिक्कू"
24th may 2009
01:09 AM

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