Friday, March 12, 2010

ये दुनिया बड़ी निराली है !

कितनी प्यारी है ये दुनिया ,
ये दुनिया बड़ी निराली है !
य़ू तो था मैं पिछले जनम भी,
क्यूँ लगे इस बार ,कितनी खुशहाली है !!

ना है इर्ष्या , ना है द्वेष ,
कहाँ गये वो भाव भेद !
कितने खुश हैं लोग यहाँ के ,
है सबका बस एक भेष !!

मेरा भी दिल कहता यही है ,
कि छोड़ दू उन करतूतों को !
अपना लूं बस आदत ऐसी ,
जो भुला दे बस , भेद - भाव , राग -द्वेष की भूतों को !!

आओ मिलकर हम सभी ,
यही मार्ग अपनाते हैं !
थे द्वेष जो करते, उस जनम में हम ,
आओ साथ मिलकर, उसे अब भुलाते हैं !!

प्रशांत "पिक्कू"
13/03/2010
00:48 am

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