कितनी प्यारी है ये दुनिया ,
ये दुनिया बड़ी निराली है !
य़ू तो था मैं पिछले जनम भी,
क्यूँ लगे इस बार ,कितनी खुशहाली है !!
ना है इर्ष्या , ना है द्वेष ,
कहाँ गये वो भाव भेद !
कितने खुश हैं लोग यहाँ के ,
है सबका बस एक भेष !!
मेरा भी दिल कहता यही है ,
कि छोड़ दू उन करतूतों को !
अपना लूं बस आदत ऐसी ,
जो भुला दे बस , भेद - भाव , राग -द्वेष की भूतों को !!
आओ मिलकर हम सभी ,
यही मार्ग अपनाते हैं !
थे द्वेष जो करते, उस जनम में हम ,
आओ साथ मिलकर, उसे अब भुलाते हैं !!
प्रशांत "पिक्कू"
13/03/2010
00:48 am
nice
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