Tuesday, December 1, 2009

बंदिश में था समय के वो बारिश !

पहली बारिश थी ये पंजाब की ,
भींग चूका था पूरा बदन जनाब की !
दोस्तों का जो संग था इस बरसात में ,
क्या बताऊँ बात फिर वो शबाब की !!

प्यासा था मन और प्यासा बदन ,
गिरी बूंद जो शारीर पे तो मचल उठा तन मन !
नाचते गाते हुए किया बरसात का अभिनन्दन ,
किया दुआ बरिशों से , की अक्सर आओ मेरे आँगन !!

तेज़ हवा के साथ बरसात का पानी ,
छू रहा था बदन को और कर रहा था मनमानी !

बिजली सी कौंध रही थी अंग अंग में मेरे ,
जताया बारिश को की , आता बड़ा मजा जब होता हूँ संग तेरे!!

बंदिश में था समय के वो बारिश ,
वापिस जाने का भी समय हो चूका था !
किया आलिंगन बदन को मेरे ,
पर था क्या दिल में ,जाहिर नहीं वो कर पाया था !!

बोला मैंने ,कह दो बातें दिल खोलकर ,
रुको पास और मेरे ,न जाओ मुंह मोड़कर !
आवाज़ आई बूंदों से की , हैं हज़ार आशिक मेरे ,
फिर आउंगी तेरे पास कभी किसी को अकेले छोड़कर !!

प्रशांत पिक्कू
1st Dec.2009
02:00 am

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