Monday, May 11, 2009

पता नहीं ,इस हमदर्दी को ,मैं क्या ऐसा नाम दूं !

पता नहीं ,इस हमदर्दी को ,
मैं क्या ऐसा नाम दूं !
वो ही तो है हमदर्द मेरा ,
नहीं लगता ,कहाँ तक उनका साथ दूं !!

नहीं जानता ,ये भी मैं की ,
कैसे वो मेरे हमदर्द बने !
मिले एक दिन बस यूँ ही ,
और क्या पता ,कैसे ये दर्द मिले !!

पहली बार जब देखा उनको ,
दिल में मेरे ,एक कसक उठी !
बढा दिया हाथ मैंने दोस्ती का ,
फिर जिन्दगी सुगंधों से महक उठी !!

अभी का हाल बुरा है मेरा ,
जी नहीं बिलकुल लगता है !
यूँ तो साथ है प्यार मेरा ,
पर दुनिया से डर लगता है !!

प्रशांत "पिक्कू"
06th May2009
06:50 PM

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