Friday, May 8, 2009

खेल को भी खेल के देखो !

खेल को भी खेल के देखो ,
दुनिया में कई खेल होता है !
खेल को अगर ,खेल लिया ,
तो खेल भी ,कोई खेल होता है !!

पलटो पन्ने उतने खेल के ,
जिनको तुने खेल लिया !
देखो कितने में जीत हुयी ,
और कितने को तुने खेल लिया !!

कब तक ऐसे खेलना है ,
जिसका ना ही कोई ठिकाना है !
अब खेलो कुछ ऐसा खेल ,
जिसमे लगे मुझे जीत जाना है !!

जीतने की यूँ तमन्ना हो तो ,
खेल भी आसान हो जाते हैं !
खेल के देखो कुछ ऐसा खेल ,
जिससे जीवन सफल हो जाते हैं !!

प्रशांत"पिक्कू"
05th May 2009
09:24 AM

3 comments:

  1. इंसान का लेखन उसके विचारों से परिचित कराता है। ब्लोगिंग की दुनियां में आपका आना अच्छा रहा, स्वागत है. कुछ ही दिनों पहले ऐसा हमारा भी हुआ था. पिछले कुछ अरसे से खुले मंच पर समाज सेवियों का सामाजिक अंकेषण करने की धुन सवार हुई है, हो सकता है, इसमे भी आपके द्वारा लिखत-पडत की जरुरत हो?

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  2. उत्तम! अति उत्तम! सुन्दर रचना के लिए शुभकामनाएँ.......

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  3. खेल को भी खेल के देखो ,
    दुनिया में कई खेल होता है !
    खेल को अगर ,खेल लिया ,
    तो खेल भी ,कोई खेल होता है !!
    हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है...

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